Monday, June 25, 2012

सतयुग की वापसी (Revival of Golden Era)


सूर्योपासना के साथ इस राष्ट्र का सूर्योदय होने जा रहा हैं। स्वामी विवेकान्नद की भविष्यवाणी सत्य होने जा रही है, मै अपने दिव्य नेत्रो से देख रहा हूं कि भारत माता स्वर्णिम सिंहासन पर विराजमान हैं।

उठो सुनो प्राची से उगते सूरज की आवाज,
            अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज ।।
भारत में एक आम धारणा पायी जाती हैं कि चार युग है- सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलियुग। सतयुग में सच्चार्इ मानवीय मूल्यों का प्रभुत्व रहता है। धीरे-धीरे इनका पतन होते होते कलियुग में सब समाप्त हो जाता है। अब जो समय चल रहा है वह कलियुग है और आने वाला समय धीरे कलियुग होगा। उस समय पाप, पीड़ा, पतन चरम सीमा पर होगा।
     यदि हम मान्यताओं से हटकर अपनी बुद्धि से सोचें और आज की स्थिति पर विचार करें तो प्रतीत होता है कि आज स्थिति जितनी भयावह है उससे अधिक नीचे नहीं गिर सकती। यदि इससे नीचे आयी तो जीवन का अस्तित्व ही संकट में पड जाएगा। इस समय सभी प्रकार के संकट चरम सीमा पर है। स्वास्थ्य संकट एक बड़ी समस्या के रूप् में उभर रहा है। स्वस्थ व्यक्ति ढूढ़ें नहीं मिल पा रहे हैं आदमी किसी तरह अपनी गाड़ी खींच रहा है। भ्रष्टाचारी धोखेबाजी की अति हो चुकी हैं किसी चीज पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है। खाने पीने की सभी वस्तुएँ वायु विषैले होते जा रहे हैं। क्या इससे भी अधिक बिगाड अथवा घोर कलियुग संभव है?
     सनातन धर्म के नाम पर समय-समय पर समाज में मूर्खत: मान्यताएँ फैल रही हैं। जैसे गाँधीजी के समय में छुआछूत, जातिप्रथा पर्दाप्रथा का बोलबाला था। समुद्र पार जाने वाले को धर्म विरोधी घोषित कर दिया जाता था। सबसे 50-60 वर्ष पूर्व गायत्री मंत्र के जप का अधिकार समाज के केवल वर्ग को ही माना जाता था परंतु षि दयानंद, मालवीय जी युग दृष्टा श्री राम आचार्य जी के प्रयासों से आज देवत्व को जागृत करने वाला यह मंत्र जन-जन तक सुलभ हो पाया। इसी प्रकार यदि हम इस मूढ़ मान्यता पर विश्वास कर लें कि कलियुग है और सुधार की कोर्इ गुजांइश नहीं है तो दिनोंदिन स्थिति बिगडती चली जाएगी और हमारे देश का पतन आराम से हो जाएगा।
     सौभाग्य से इस भारत भूमि पर दो महामानव ऐसे आए जिन्होंने अपनी प्रचण्ड तप शक्ति से काल की इस धारा को उलटने की घोणा की उनके नाम है श्री अरविन्द एंव श्री राम आचार्य।
     यदि गहरार्इ से देखें तो दोनों की घोषाणाओं में बहुत समानता पायी जाती है। श्री अरविन्द अतिमानव के धरती पर अवतरण की कान्सेप्ट देते है तो श्री राम प्रज्ञावतार उनकी उज्जवल भविष्य का जन आंदोलन खडा करते हैं। महायोगी अरविन्द सन 1926 में अपने आश्रम में कार्यकलापों को श्री माँ को सौंपकर एक कमरे में स्वयं को बंद कर लेते है ताकि अतिमानस को जन सुलभ बनाया जा सके। बालक श्री राम को 1926 में उनके हिमालयवासी गुरू युग परिवर्तन के निमित्त 24 र्ष तक प्रचण्ड तप करते रहने का निर्देश देते है। इन दोनों महापुरूषों के अलावा अनेक ‘‘देवपुरूषो इस निमित्त तपास्याओं में संलग्न रहें उनमें महर्षि रमण का नाम उल्लेखनीय है। श्री रमण का मौन तप विश्वविख्यात है।
     ऐसा नहीं है कि केवल ये दो महामानव ही युग परिवर्तन की घोणा करते है। एक अन्य विचारधारा के अन्तर्गत जिस दिन श्री रामकृष् परमहंस के पावन चरण इस धरती पर पड़ें सतयुग का आगमन हो गया था। परंतु 200 र्षो का सन्धिकाल (सन 1836 से 2036 तक) है जिसमें समाज में व्याप्त कुरीतियों का निवारण होना है। शीघ्र ही कलियुग इस धरती को छोड़कर भागता नजर आएगा। महान योगी परमहंस योगानंद जी के गुरू युक्तेश्वर गिरि जी का मत है कि धरती पर 12,000 र्षो के आरोहरण अवरोहण काल चलते है। अब आरोहरण क्रम चल रहा है। शीघ्र ही चहुँओर उन्नति, शक्ति, आनन्द बिखरने वाला है। ऐसा भी माना जाता है कि राजा परीक्षित कलियुग की छाती पर चढ़ बैठे और लोगों को यह पता नहीं चल पाया कि कलियुग का समय है। बाह में कलियुग की गणना में कुछ गलती हो गयी या मजबूरी थी


पृथ्वी का वातावरण परिवर्तित हो जायेगा। हमारे भाव, विचार, कर्म बदलेंगे। रहन-सहन का ढंग बदलेगा। शिक्षा-व्यापार के तरीके बदल जायेंगे। उनमें सुधार होगा। नये शास्त्र उपलब्ध होंगे। मानव-चेतना अपनी वर्तमान संकीर्णता को त्याग देगी। एक अतिमानसिक विशालता में मानव उठेगा। एक दिव्य आत्मिक दृष्टि से वह जगत को देखगा और सब को आत्मीय, सब में आत्मा, आत्मा में सब को देखेगा। मुक्ति की धारणा बदल जायेगी। मुक्त आत्माएं पृथ्वी पर पुन: जन्म लेंगी और हमें अपने विगत जन्म-जन्मान्तरों के अनुभवों से लाभान्वित करेंगी। अब तक की प्राप्त मुक्ति एक आंशिक मुक्तावस्था थी। वह हमारी संपूर्ण सता की मुक्ति नहीं थी। इसलिए मुक्त आत्माएं अपने अवशिष्ट कार्य को, साधना की अपूर्णता को पूर्ण करने के लिए जन्म लेंगी। इसके लिए उन्हें बाध्य नहीं किया जायेगा। ऐसा वे स्वयं अंतप्रेरित होकर करेंगी। धरती के वातावरण को परिवर्तित देखकर, उसमें आत्म-दिव्यता को झलकती पाकर वे स्वयं जन्म लेना चाहेंगी और अपने आपको अतिमानव अर्थात दिव्य मानव के रूप में विकसित देखने के दिव्य स्वप्न को साकार करेंगी। भव-उपवन को नव कुसुमों से पुष्पित देख कर, पृथ्वी के वातावरण में दिव्यता लखकर रायेंगी और उसमें सहयोग प्रदान करने के लिए यहां अवतरित होंगी। मनुष्यो के बीच में, उन्हें सहायता करते हुए, मुक्त भाव से जीवन बिताने में अधिक गहन, अधिक व्यापक संतुष्टि अनुभव करेंगी। अपने आपको एक ओर मुक्त देखती हुर्इ, दूसरी और प्रभु-सेवा में सीधी संलग्न पाकर पृथ्वी पर ही मुक्ति के अपार आनंद को अनुभव करेंगी।
     नर्इ सृष्टि क्या होगी, कैसी होगी, उसमें कौन-कौन से नये तत्व होंगे इसकी धारणा करना अभी हमारी बुद्धि की पहुँ के बाहर हैं। हम चाहें तो इस विचार को स्वीकार कर सकते हैं और हम चाहें अस्वीकार भी कर सकते हैं। विचार तो विचार ही होता है। लेकिन जिन्हें दृष्टी है जिनके अंतर्लोचन खुले हैं, वे देख रहे हैं कि नया जगत अवतरित हो रहा है, जन्म ले रहा है वर्तमान जगत के पीछे से विकसित हो रहा है उसकी अभिव्यक्ति दिन-दिन ठोस रूप ग्रहण कर रही हैं। (श्री अरविन्द)

आप आइए और हमारी मिलिट्री में भरती हो जाइऐ। आपमें हर आदमी को प्रज्ञावतार के कंधे-से-कंधा मिलाने के लिए हम आपको दावत देते है, विशेÔकर उन लोगों को जिन्होंने अपनी आदतें ठीक कर रखी है, परिश्रमी है चरित्रवान है और जिनका वनज भारी नहीं है अर्थात जिम्मेदारियों का बोझ हल्का हैं। ऐसे लोगों के लिए सबसे बेहतरीन काम यह है कि अपना गुजारा करने के बाद में वे समाज के काम आएगे देश के काम आएँ। अब हमें अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने के लिए आपकी सहायता की जरूरत है। इसके लिए अब हमको वह वर्ग ढूँढना पड़ेगा जिनको विचारशील वर्ग कहते है। अब हमें इंजीनियरों की जरूरत है डॉक्टरों की जरूरत है और सिपाहियों की जरूरत है अथवा ओवरसियरों की जरूरत है हमको उनकी जरूरत है जो राष्ट्र के निर्माण में काम सकें। परिजनों की जिम्मेदारी है कि वे उसे जलती रखने के लिए हमारी ही तरह अपने अस्तित्व के सारतत्व को टपकाएँ। परिजनों पर यही कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व छोड़कर इस आशा के साथ हम विदा हो रहे है कि महानता की दिशा में कदम बढ़ाने की प्रवृति अपने परिजनों में घटेगी नहीं, बढ़ेगी ही। (महर्षि श्री राम आचार्य) 

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